ज़िना क्या है, इस्लाम में किन कामों को ज़िना बताया गया है



ज़िना क्या है, इस्लाम में किन कामों को ज़िना बताया गया है

 

इस्लाम में शौहर और बीवी के रिश्ते को सबसे हसीन तरीन रिश्ता करार दिया गया है। लेकिन अगर शौहर एक ऐसी औरत के साथ सोहबत या हमबिस्तरी करें जो उसकी बीवी नहीं है तो यह ज़िना कहलाता है यह जरूरी नहीं है कि साथ साथ में सोने को ही ज़िना कहते हैं बल्कि किसी गैर औरत को छूना भी ज़िना का एक हिस्सा है और किसी पराई औरत को देखना आंखों का जिन्ना है।


आंखों का जिन्ना है।

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नबी ने फ़रमाया है कि शौहर का बीवी के अलावा किसी गैर औरत को छूना और उसके साथ सोना ज़िना है। जोकि इस्लाम में गुनाह है। इस्लाम में जिंदा करने वालों के लिए दुनिया में भी सजा रखी गई है और मरने के बाद भी अल्लाह हु से सख्त सजा देगा हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम ने फरमाया है कि शिर्क के बाद अल्लाह के नजदीक इस गुनाह से बड़ा कोई गुनाह नहीं कि एक शख्स किसी औरतों से सोहबत करे जो उसकी बीवी नहीं।

अल्लाह ने फरमाया है कि जब कोई मर्द और औरत ज़िना करते हैं तो ईमान उनके सीने से निकल कर सर पर साए की तरह ठहर जाता है। मोमिन होते हुए तो कोई ज़िना कर ही नहीं सकता। अल्लाह कुरान में फरमाता है कि ज़िना के पास नहीं जाना, बेशक वह बेहयाई है और बुरी राह है। हजरत मूसा ने जब अल्लाह से ज़िना की सजा के बारे में पूछा तो अल्लाह ने फरमाया कि उसे आग की जरह पहनाऊंगा। वह ऐसा भारी है कि अगर बहुत बड़े पहाड़ पर रख दी जाए तो वह भी टुकड़े-टुकड़े हो जाएगा।

अगर ज़िना करने वाला शादीशुदा हो तो उसे खुले मैदान में पत्थर मार मार कर मार डाला जाए और अगर ज़िना करना वाला कुंवारा हो तो उसे सौ कोड़े मारे जाएं। अल्लाह ने फ़रमाया है कि इस गुनाह को करने से बचें। अगर कोई कुंवारा शख्स ज़िना करता है तो इसकी सजा उसके माँ- बाप को भी मिलती है। क्यूंकि उन्होंने उसकी शादी जल्दी नहीं करवाई। दोस्तों इस गुनाह की सजाएं बहुत बड़ी हैं, इसलिए खुद भी बचें और अपने दोस्तों को भी इससे बचाएं।




 ज़िना क्या है, इस्लाम में किन कामों को ज़िना बताया गया है


कुरान में अल्लाह फ़रमाता है ज़िना के पास भी ना जाना, बेशक वो बेहयाई है और बुरी राह है। ज़िना की सज़ा और अज़ाब, अगर ज़िना करने वाले शादी शुदा हो तो उन्हें खुले मैदान में पत्थर मार कर मार डाला जाये और अगर कुंवारे हो तो 100 कोड़े मारे जाये। बुखारी शरीफ जो स्त्री बहुत बारीक पारदर्शी वस्त्र पहने वह जन्नत में जाना तो बहुत दूर की बात स्वर्ग की ख़ुशबू भी नहीं पाएगी। यह शिक्षा पैग़म्बर (सल्ल॰) की दी हुई है।

क़ुरआन में मुस्लिम समुदाय को आदेश है भलाइयों का हुक्म देने और बुराइयों को रोकने का (3:104)। इस काम को मुस्लिम समुदाय का कर्तव्य बताते हुए उसे उत्तम गिरोह कहा गया है (3:110) तथा इसे उसका गुण और विशेषता कहा गया है (9:71)।

जरुरत पड़ने पर औरतें खुले चेहरे के साथ बाहर निकलें तो उन्हें देखकर पुरुषों में या पुरुषों को देखकर औरतों में दुर्भावना पैदा होने की संभावना होती है इसलिए क़ुरआन में अल्लाह का हुक्म है कि अपनी निगाहें नीची रखा करो (24:30)। पैग़म्बर मुहम्मद (सल्ल॰) ने शिक्षा दी अचानक निगाह पड़ सकती है यह एक व्यावहारिक तथ्य है तो निगाह हटा लो। दोबारा-तिबारा निगाह मत डालो।

पहली निगाह तुम्हारी अपनी थी इसके बाद की निगाहें शैतान की होंगी। अर्थात् तुम्हे यहाँ से ग़लत रास्ते पर डालने के लिए शैतान का काम शुरू हो जाता है। पैग़म्बर मुहम्मद (सल्ल॰) ने शिक्षा दी है कि जब दो जवान पुरुष व स्त्री एकांत में न रहें। जब वह एकांत में होते हैं तब वह केवल दो ही नहीं होते बल्कि उनके बीच एक तीसरा भी होता है और वह है शैतान।

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अर्थात् ऐसे मौके पर शैतान दोनों की काम-भावना को उकसा-उकसा कर अनाचार की ओर खींचने में लग जाता है। इस्लाम, क़ानूनी सक्रियता से पहले ज़्यादातर काम अपराध हो जाने से बहुत पहले शुरू कर देता है यानी उपरोक्त दो आध्यात्मिक व सामाजिक स्तरों पर इतना अधिक काम कर चुकता है कि अपराध की घटनाएँ लगभग 95-98 प्रतिशत ख़त्म हो जाती हैं। बाक़ी 2-5 प्रतिशत घटनाओं के लिए सख़्त क़ानून और कठोरतम दंड का प्रावधान करता है।

दोषी पुरुष-स्त्री दोनों या कोई एक यदि वह विवाहित हैं तो पत्थर मार-मारकर हलाक कर देने यानि मार देने की सज़ा दी जाती है। और यदि दोनों या कोई एक अविवाहित हो तो सौ कोड़े मारने की सज़ा बताई गई है। इसके आलावा इन सज़ाओं में कुछ कमी-बेशी नहीं की जा सकती। यही क़ानून इस्लामी राज्य-व्यवस्था में हमेशा-हमेश लागू होता रहेगा। इसके आलावा सज़ाएँ खुलेआम जनसामान्य के सामने देने का आदेश है। जिससे लोग दुष्कर्म से बचने के लिए डर और ख़ौफ़ रखें।








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