Zawal Time Kya Hai जवाल के वक़्त इबादत कियों नहीं किया जाता है : अस्सलामु अलैकुम वरहमतुल्लाह वबरकाताहु नाजरीन बहुत से लोगो को Zawal Time किया है और जवाल के वक़्त इबादत या तिलावत कियों नहीं क्या जाता है इसके बारे में मालुम है और बहुत से लोगो को उनके जेहन में ये सवाल उठता है आखिर जवाल होता क्या इस वक़्त यानि जवाल के वक़्त इबादत कियों नहीं किया जाता है तो हमारे प्यारे भाई और बहने आज हम इन्ही बातों पर रौशनी डालेंगे और इन्शाह अल्लाह इसकी मुकम्मल जानकारी मालूमात हासिल करेंगे| आप इसी तरह की और जानकारी के लिए
Zawal Time Kya Hai
बिस्मिल्लाह हिर्रहमा निर्रहीम
जवाल का वक़्त यानी कुफ्फार का वक़्त नाजरीन हम आपको ये साफ़ साफ़ बता दें की रात को जवाल का वक़्त नहीं होता है कितने लोग जिनको इस बात का इल्म नहीं होता है वो लोग रात के बारह बज ते ही इबादत या तिलावत करना बंद कर देते है तो ऐसा बिलकुल भी नहीं है जवाल का वक़्त सिर्फ दिन में होता है इसके मुकम्मल जानकारी के लिए निचे के पोस्ट को जरूर पढ़ें तभी आपको मुकम्मल जानकारी मिल पाएगा |
जवाल का वक़्त सूरज से तलूक होता है कितने लोग रात को भी जवाल का वक़्त समझ लेते है तो हम आपको ये साफ़ करदें की रात को जवाल का वक़्त बिलकुल भी नहीं होता है क्योंकि रात को सूरज नहीं होता है जवाल का वक़्त कब होता है तो नाजरीन हम आपको ये बता दे की जवाल का कोई फिक्स वक़्त Time नहीं होता है माना ये जाता है की सुबह सादिक से लेकर गुरुबे मगरिब के बिच का जो वक़्त होता है वो जवाल का वक़्त होता है यानि के सुबह शादिक से लेकर गुरुबे मगरिब के बिच का जो वक़्त होता है वो जवाल का वक़्त होता है |
प्यारे नाजरीन क्या अपने ये कभी सोचा है नमाज़े फज़र मगरिब और ईशा के नमाज़ में आवाज़ बुलंद करके नमाज़ और तिलावत किया जाता है जब की जहर और अशर में पस्त आवाज़ के साथ तिलावत और नमाज़ पढ़ा जाता है और इसके अलावा जवाल के वक़्त इबादत करने से कियों मना किया जाता है क्या जवाल के वक़्त हमारी इबादत कुबूल नहीं होती है या इसके पीछे कोई और मसला छुपा हुवा है |
जवाल के वक़्त इबादत क्यू नहीं किया जाता है
नबीये करीम सल्लल्लाहु वालहि अलैहि वस्सल्लम ने फ़रमाया जिसने ठन्डे वक़्त की दो नमाज़ अदा की यानी फज़र और अशर की वो जन्नत में जाएगा एक और हदीस में है की रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वस्सल्लम ने फ़रमाया की पांचो वक़्तों की मिशाल बहते नहर की मानिद है जो किसी के दरवाजे पर हो और वो पांचो वक़्त उसमे नाहा रहा हो |
नमाज़े फर्ज होने के बाद जब मुसलमान नमाज़ पढ़ते और तिलावत करते थे तो कुफ्फार इन्हे तंग करने के लिए सोरो गुल्ल करते कभी सीटियां बजाते तो कभी हमारे प्यारे नबी सल्लल्लाहु अलैहि वस्सलम के शान में नाजिबा गालिबात कहतें इसलिए अल्लाह तआला ने बनी इस्राइल में हुकम दिया और की ना अपनी नमाज़ में आवाज़ बुलंद करें और न बिलकुल आहिस्ता पढ़ें|
और इन दोनों के दरमियान रास्ता इख्तयार करें इसके बाद फज़र और ईशा वक़्त चूंके कुफ्फार सो रहे होते थे और मगरिब के वक़्त खाने पिने में मसरूफ होते थे इस लिए इन तीनो औकात में हुकुम दिया गया जहरन नमाज़ अदा किया जाए वो इस लिए की इस वक़्त कुफ्फार खाने पिने और सोने में मसगूल हुवा करते थे लिहाजा ऊँची आवाज़ में नमाज़ पढ़ने का हुकम दिया गया |
Zawal Time: नाजरीन इसके अलावा सबसे अहम् बात ये थी की जवाल के वक़्त Time जवाल के वक़्त तिलावते कुरआन नमाज़ और दीगर तस्बीहात नहीं करनी चाहिए दोस्तों यहाँ सवाल ये पैदा होता है ऐसा क्यू है तो हम यहाँ आपको बता दे की कुछ लोग कहते की इस वक़्त तिलावत या नमाज़ पढ़ने से जिन्न हाजिर हो जाते है और कुछ लोग ये कहते है की ये जिन्न के इबादत करने का वक़्त होता है |
जवाल किया है |
लेकिन प्यारे नाजरीन हकीकत कुछ और है तुलुवे आफताब और जवाल के वक़्त कुफ्फार सूरज की पूजा करते थे और इस लिए मुसलमानो को इन औकात में इबादत करने से मना कर दिया गया ताकि कुफ्फार ये ना समझ बैठे की मुसलमान भी इनके तरह सूरज की पूजा करते है दोस्तों ये थे चंद सवालात जिनका ख़यालात तो सब के जेहनो में आता था लेकिन इनके पास कोई ठोस सबूत और हकीकत की रिसाई हासिल नहीं थी हम उम्मीद करते है की आपको हमारा ये पोस्ट पसंद आया होगा |
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